तेरा प्रेम
तेरा प्रेम न शब्दों में
समाएँ
न भावनाओं के तारों में
पिरोया जाएँ
पाकर भी इसे अधूरी है प्यास
प्रेम में अति करने को मन
ललचाएँ
सजता रहा तालमेल की सरगम से
करता रहा तारीफों का
श्रृंगार
सफलता का जो सूचक बन आया
आ, सबसे पहले तू इसकी ही नजर
उतार
तालमेल की सरगम से सजा
मीठे सपनों की सेज पर
सजा
सम्मान का है जिसमें भाव
जिस पर है हमको अभिमान
आजा थाम ले ये हाथ
और कर एक नई शुरूआत
परिभाषा बदल दे रिश्तों की
बन जा मिसाल फिर एक बार
- - गायत्री
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